वो पुराना घर, वो मिट्टी की खुशबू,
जहाँ हर दीवार पे लम्हें चुपचाप सोते थे।
छत की दरारों से झाँकता था बचपन,
और आँगन में दादी की कहानियाँ बोती थीं।
टूटी चौखटें, फिर भी दहलीज़ सजी थी,
हर कोना एक किस्सा, हर कमरा एक पूजा थी।
वो अलमारी, जिसमें माँ की चिट्ठियाँ थीं,
और छुपा हुआ पापा का पुराना रेडियो भी।
वक़्त ने उड़ा दी उसकी छत की धूल,
पर यादें आज भी दिल में महकती हैं फूल।
न खिड़कियाँ रही, न परछाइयाँ वहीं,
पर वो एहसास... अब भी साँसों में कहीं।
अब वो घर, बस तस्वीरों में रहता है,
पर हर दिल की दीवार पे, वो अब भी बसा है।
टूट सकता है इमारतों से रिश्ता,
मगर जड़ों से नहीं... ये दिल गवाह है।
अगर आप चाहें तो इसमें आपकी कोई खास याद या नाम जोड़ सकते हैं।
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