माना कुछ भी ठीक नहीं,
माना कोई नज़दीक नहीं,
माना कि सब रूठे मुझसे,
दुख में कोई शरीक नहीं,
माना जेबें हल्की मेरी,
सारी गलती कल की मेरी,
एक भी पल सुख मिल पाया हो,
ऐसी कोई तारीख़ नहीं,
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हाँ,
टूटूंगा मैं सौ-सौ बार,
फिर भी मानूंगा न हार..............
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...
..
माना मेरे नाखूनों में,
जंग लग गई है थोड़ी,
पैरों में रफ़्तार कभी थी,
आज चलन तक है छोड़ी,
माना मेरे खाने में,
हाँ कमी हो गई, आधा है,
माना मज़दूरी का जीवन,
दुख है बेहद ज़्यादा है,
हाँ मेरा जीवन सादा है,
सिलवट मुख पे आमदा है,
फिर भी मज़बूत इरादा है,
उम्मीद नहीं मैंने तोड़ी,
सांसों की अंतिम गिनती तक,
भले लगी हो खून की धार,
टूटूंगा मैं सौ-सौ बार,
फिर भी मानूंगा न हार...............
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होंगे वो कोई देव या दानव,
ताक़त थोड़ी और लगाएँ,
हाँ-हाँ हारा हाँ सिर पटका,
ख़ुद को अब फिर से अज़माएँ,
वज्र शक्तियां ब्रह्मास्त्रों को,
छाती पे मेरी दे मारो,
ज़िंदा नहीं छोड़ना मुझको,
हत्या कर दूँगा हत्यारों।
जान बची है अब भी यारों,
आ जाओ एक बार में सारों,
मिल के चक्रव्यूह रच डारो,
मंत्र कहीं से लिखवा लाएं,
रोम-रोम तुम भले जला दो,
प्राण न त्यागूँगा इस बार,
टूटूंगा मैं सौ-सौ बार,
फिर भी मानूंगा न हार......................
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