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कागज की कश्ती………………

    Vijay Verma
    @Vijayverma
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    1 Likes | 1 Views | Apr 13, 2025

    आज एक कविता पड़ी,

    नाव के बारे में,

    तो.......................

    .

    .

    .

    किसी ने लिखा कुछ,

    पुराना, सुराना,

    हमें याद आया,

    वो बिसरा ज़माना.....................

    .

    किताबें जगी कुछ, खड़ी हो गई सी,

    मुझे देख के शायद चिल्ला रही थी,

    कि भूले कहाँ हो, आओ चलो अब,

    प्यासी थी शायद, मरी जा रही थी,

    फिर रोका खुद को,

    कुछ कर के बहाना,

    किसी ने लिखा कुछ,

    पुराना, सुराना,

    हमें याद आया,

    वो बिसरा ज़माना............................

    .

    .

    वो बोलीं कि नावों में ये पन्ने ढालो,

    और बन जाओ नाविक, हमें आज़मा लो,

    तैरा लो हमें आज फिर से कहीं पे,

    भीतर का बच्चा-मन बाहर निकालो,

    कहाँ गुम हुआ वो,

    कहाँ उसका ठिकाना,

    किसी ने लिखा कुछ,

    पुराना, सुराना,

    हमें याद आया,

    वो बिसरा ज़माना......................

    .

    .

    वो पन्ने खुले और उड़ने लगे से,

    हवा ही हवा में वो जुड़ने लगे से,

    वो कुछ नाव की शक्ल में आ रहे थे,

    फड़कने, लिपटने, सिकुड़ने लगे थे,

    मैं बेबस, ज़रूरी है ड्यूटी पे जाना,

    किसी ने लिखा कुछ,

    पुराना, सुराना,

    हमें याद आया,

    वो बिसरा ज़माना........................