"काश मैं समय को वापिस ला पाती
जो एक साल यु हँस कि बिताया था तेरे संग
काश में उस साल को पुनः जी पाती...
तेरे बचपने को मैं फिर से अपना बना पाती..
बाहें खोल कर तुझे बस अपनी बांहों में समा पाती...
तुझे हर दम देखने.. हर वक़्त चूमने का सुख पा पाती...
फिर से तेरे शामे खुलके अपना बचपना दिखा पाती..
काश मैं वो एक साल पुनः जी पाती..
काश में रोक पाती उस वक़्त को..
जहाँ तुम सबको छोर्ड कर बस मेरी हुआ करती थी...
जहाँ तुझे खोने के ख्याल से मेरी रूह नहीं डरती थी...
जिस वक़्त ये रिश्ते कि डोर भरोसे से चला करती थी..
काश मैं रोक पाती उस वक़्त को...
काश थम जाते वो लम्हें वही
जिनमे हम खिलखिला कि साथ हँसा करते थे..
जिनमे तू अपने हाथों से मेरे आँखों से चलकते अंशुओं को पुछा करते थे..
जिन लम्हो में हम दोनों ही ज़िन्दगी को भरपूर जी लिया करते थे...
काश वो लम्हें आज भी ज़िंदा होते..
क्यों तेरे जाने का ये मसाम इतनी जल्दी आ गया..
मैंने जो तम्नाय सजा कर रखी थी...
उन सारी तम्मनो को पल में उड़ा गया..
और बस मेरे पास कुछ रह गया तो तेरा मुझसे दूर जाना और तेरी कुछ यादों का सिलसिला.... --स्नेहा बालोदी (uttrakhand)
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