श्री राम।

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    श्री राम।

    अंतरमन का ग्यान राम हैं

    वही हैं विश्वास और ध्यान,

    वो हैं बसे रोम रोम में

    वो है दुविधा का समाधान।

    कभी संयम

    तो कभी सरलता

    कभी संजीदगी

    तो कभी चंचलता।

    वह कभी वीर योद्धा हैं

    तो कभी प्रीत की मुरत,

    कभी पाप को हरानेवाले

    तो कभी निष्पाप सी सूरत।

    राम ही आरंभ हैं

    राम ही अंत हैं,

    वही हैं हे राम और

    श्री राम। अंतरमन का ग्यान राम हैं वही हैं विश्वास और ध्यान, वो हैं बसे रोम रोम में वो है दुविधा का समाधान। कभी संयम तो कभी सरलता कभी संजीदगी तो कभी चंचलता। वह कभी वीर योद्धा हैं तो कभी प्रीत की मुरत, कभी पाप को हरानेवाले तो कभी निष्पाप सी सूरत। राम ही आरंभ हैं राम ही अंत हैं, वही हैं हे राम और वही राम नाम सत्य हैं।

    वही राम नाम सत्य हैं।