मुझे डर है कविता समझने वालों से,
कि कहीं वे उलझे लफ्ज़ों में छुपी बातें न पढ़ लें।
और मैं बेबस, बेपर्दा रह जाऊँ,
अपने ही जज़्बातों की नुमाइश के सामने।
मुझे डर है कविता समझने वालों से,
कि कहीं वे उलझे लफ्ज़ों में छुपी बातें न पढ़ लें।
और मैं बेबस, बेपर्दा रह जाऊँ,
अपने ही जज़्बातों की नुमाइश के सामने।
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