वो किताबें जो खुली रह गईं अलमारी में,
जिनके पन्नों में सिमटा है रहस्यों का सागर।
कुछ किरणें बाकी, कुछ छायाएँ अनसुनी,
यही तो सुंदरता है उन अधूरे अफ़सानों की।
नदी का वो मोड़ जहाँ रुक गया सफ़र उसका,
लहरों में समेटे हुए सपनों का अंबार।
पूछो न उससे मंज़िल कहाँ है छिपी,
कभी-कभी राहें ही होती हैं असली दस्तानों की।
तारों की चादर में कुछ बिंदु अछूते रहे,
ख्वाबों की भीड़ में कुछ अनकही अनजानी बातें।
जो खो गए वो गीत, जो लिखे न गए वो अक्षर,
यही तो मिठास है उन अधूरे इशारों की।
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