Creation 758814

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    0 Likes | 2 Views | Mar 10, 2025

    मंज़िल से मिलके आएंगे।

    वो दिन भी कमाल थे

    जब हसीन समा था

    और मुकम्मल

    मंजिल का जहां था।

    थी ख्वाइशें हज़ार

    और थे ख़्वाब बेहिसाब,

    जब जुनून में

    मेहनत का हुआ जुड़ाव।

    कभी नसीब की

    मरम्मत हुई,

    तो कभी नसीब से

    ठोकर मिल गई।...

    किंतु जख्मों ने

    हर बार लड़ने की,

    गजब ऊर्जा,

    प्रदान कर दी।

    कभी तूफानों से

    तो कभी अरमानों से,

    अचानक भेंट कर के

    सपने फिर सजाने लगे।

    चाँद की तलाश में

    जब हम निकले तो

    तारों से बात करते करते

    चाँद से मिलने लगे।

    ऐसे मंजिल खोजते खोजते

    हम जमीन आसमान से

    बार बार मिलने लगे।