14 Likes | 20 Views | Mar 2, 2025 जबसे तेरे साथ हूँ ना,
किसी की कमी नहीं हुई है।
जब भी तेरा साथ हो ना,
मानो हर गलती भी सही है।
जब भी तेरे साथ बैठूं,
घड़ी भी गति पकड़ लेती है।
जब भी तुझसे बात करूं,
चेहरे में मुस्कान आती है।
फिर क्या हुआ तुझे अब?
क्यों तू छुप रही है?
खुलकर बात करती थी ना,
क्यों अब सिमटी हुई है?
सपने बहुत बड़े देखे थे फिर,
क्यों अब आँखें बंद कर ली हैं?
तू ही है जो खड़ी थी ना,
जब किसी ने मुझसे एक लफ्ज़ भी कहा।
तू ही थी जिसका हाथ थामकर,
मिट जाता ग़म जो भी था।
फिर क्या हुआ तेरे सपनों का?
क्यों छूटा साथ अपनों का?
क्या वजह रही थी जिससे,
पल-पल तूने दुख है सहा?
क्या समझा नहीं तूने मुझे इतना काबिल,
कि साथ दे पाऊं मैं तेरा, हो कोई दुविधा?
क्या यही दोस्ती रह गई थी हमारी,
कि कह भी ना पाई तू अपनी गाथा?
हर दिन घुट-घुट कर सहा,
फिर भी एक लफ्ज़ ना कहा।
क्या थी ऐसी मौन व्यथा,
कि हर दिन तेरा आँसू है बहा?
तू वही थी ना,
जिसकी कभी मुस्कान ना गई?
या भटक गई हूँ मैं,
पहचानने में क्या है सही?
क्यों तूने खुद को कम समझा?
जब साथ औरों ने छोड़ दिया।
क्यों खुद को बार-बार कोसा,
जब अपनों ने धोखा दिया?
जाने कैसे समझाऊं तुझे,
मोल नहीं तेरा, अमूल्य है तू।
जाने कैसे बताऊं तुझे,
कि खुद में unique है तू।
भले ही तू समझे कि सब तेरी गलती है,
पर ये मत भूलना कि तेरी दोस्त साथ खड़ी है।
चाहे तू कितना छुपाए मुझसे,
पर यार,
ये दोस्ती सच्ची है।
तू लाखों परदे डाल,
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