वह एक रिश्ता जो कभी बना ही नहीं
फिर भी गलतफहमी ने उसकी नींव रखी
मैंने चाहा उन्हें पूरे दिल से,
और बदकिस्मती हमारी उन्हें खबर तक नहीं
उन्हें सोचना ही मेरी सुबह शाम हो गई
मेरी हर एक रग उनके नाम हो गई
लोग हर हाल जानते हैं अपने महबूब का
और मुझ पागल को उनका नाम तक पता नहीं
गलियों में फिरती रहती हूं अब कुछ आवारा सी
कोई पूछे घर तो तेरा नाम लेना गवारा नहीं
उन्हें निहारने को हर हद पार की मैंने
और वो हमसे नजर तक मिलते नहीं
उनकी इस बेरुखी से एक टीस तो उठी है
शायद मुझसे मेरी किस्मत ही रूठी है
हिम्मत जुटा के इजहार किया अपने इश्क का
पर उन्हें तो मेरे प्यार की कदर तक नहीं
दिल टूटा कुछ बिखरा भी
मेरे हिस्से अब रह गए थे बस आंसू ही
बड़ी हिम्मत जुटा के इजहार किया था
पर उन्हें तो इस जद्दोजहद की फिकर तक नहीं
फिर छोड़ दी वह कोशिश मैंने
उन्हें अपने दिल से हटाने की
मिलकर रहेंगे हम एक दिन
मुझे भरोसा है उसे रब पर
चाहे उन्हें इस सफर की आशा तक नहीं...
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