इक दिन हम सब बंधू बैठे,
गप शप करते चर्चा कर उठे I
ये ढाई अक्षर प्रेम भला क्या है ?
बूझो तो जाने !
इस पर एक ने कहा,
जब तक दिल न टूटे ,
या प्रेमी न रूठे ,
अIस्युएँ से आंखे न भीगे,
प्रेम भला क्या संभव है?
सुनतेही दूसरे ने कहा,
प्रेम तो किसी का होना,
और किसी में खो जाना है
जैसे मीरा जी का भजन,
और गोपियों का समर्पण I
इस पर तीसरे ने कहा ,
प्रेम तो वह एहसाहस है,
जो बरामदे में दस्तक देते,
गुलाबी सा महसूस कराते,
पल में ही मुदित करदेते I
अब कवियत्री भला,कैसे चुप रहती,
विचार विमर्श से कैसे बाहर रहती I
मुस्कुराते हुए कह बैठी,
प्रेम की नैया ऐसी,
हँसते, रोते लहर पार करदेती I
चर्चा की गर्माहट में ,
कुछ और बंधू जुड़ गए I
प्रेम की भाषI में,
सब रोमांचित हो गए I
प्रेम, ऐसा भाव है,
जो हर कोई पाना चाहे,
पर देने में हिचकिचाए ,
और चर्चा में ही रह जाये ,
ये ढाई अक्षर प्रेम भला क्या है ?
बूझो तो जाने !
- महुआरिन्कू
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