था मन उदास
और एक कुर्सी पड़ी थी पास
नजर दौड़ाई थोड़ी
दिखा मुझे रस्सी दो हाथ
घरवालों ने थोपा दी
थी नाकामी की स्याही माथ पर
देखा पंखा बंद पड़ा था छत पर
मन में सवालों का एक सैलाब उमर आया
जब मेरी नज़र में घर का छत आया
दिमाग का एक कोना इशारा कर रहा था
डाल रस्सी पंखे पर दोबारा कह रहा था
लगा दी रस्सी बना दिया फंदा
कहीं से आवाज़ दी माँ ने
बेटा ढूंढ के लादे मेरा डंडा
ये मैं अपनी आप बीती बता रहा हूं
हा मैं जिंदा हं
पंखे से रस्सी हटा रहा हूँ
~अंकित
Comments