अत्याचार के बोझ तले कुछ भूखे बालक मर गए, चादर, अग्नि, फूल, दूध चढ़ाए गए, सब व्यर्थ रह गए।
राम-रहीम के नाम पे जो देश को तुम यूँ बाँटोगे, देश के दुश्मन के जाकर फिर तलवे तुम ही चाटोगे।
फिर तुम जैसे बुज़दिल को वो कागज़ जैसे फाड़ दे, हाँ, फिर शायद सोचें वो भी – कि तुम्हें जलाएँ या गाड़ दें।
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