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मैं हारी….13

    T. Khan
    @T.-Khan
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    0 Likes | 1 Views | Jan 21, 2025

    हैरानी सी हैरानी थी

    पल्वशा हैरानी से यामीर का चेहरा देखती रह गई थी और यामिर उसकी हैरानी से बेखबर अपनी नजरें डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर चलते हुए हाथ पर टिकाए हुई थी।

    तभी पल्वशा ने हैरानी से उससे पूछा था, "M.M. College of Commerce and Business Administration?"

    उसके सवाल पर यामिर ने चौक कर उसकी तरफ देखा था। उसके सवाल को समझ कर उसने हां मैं अपनी गर्दन हिला दी थी और वापस से डॉक्टर की तरफ़ मुतावज्ज्होह हो गया था।

    उसके हाँ पर पल्वशा को झटका लगा था। उसे एक और सवाल पूछने का ख्याल आया था, "MBA last year?"

    इस दफा हैरानी के मारे यामिर की पेशानी पे हैरानी के मारे शिकन उभर आई थी फिर भी उसने हां मैं अपना सर हिला दिया था। अब तो जैसे पलव्षा बेहोश होने को थी।

    लेकिन पल्वशा के इन सवालों से डॉक्टर काफी डिस्टर्ब हो गया था जब भी उसने पल्वशा से कहा था, "अब बाहर जाकर बैठिए, आपको जो भी पूछना है वह आप बाद में पूछ लीजिएगा।"

    डॉक्टर ने थोड़ा तुर्श लहजे में कहा था और मजबूरन पल्वशा को बाहर निकलना पड़ा था। वह वेटिंग एरिया में जाकर बैठ गई थी और उसका दिमाग अभी भी यामीर में उलझा हुआ था।

    थोड़ी देर के बाद यामिर डॉक्टर के रूम से बाहर निकाला था और पल्वशा फिर से हैरानी से उसका चेहरा देखती रह गई थी।

    पल्वशा जो यह सोचकर आई थी कि यामिर के इलाज में जितना भी खर्चा आएगा उसके सारे खर्चे वह अदा करेगी मगर वह इतनी हैरतज़दा थी कि उसे इसका ध्यान ही नहीं था। यामिर ने अंदर ही डॉक्टर को पैसे दे दिये थे।

    यामिर उसके थोड़ा करीब आकर उस से बोला था, "तुम्हारा बहुत शुक्रिया! तो अब मैं चलता हूं।" यामिर इतना कह कर पल्वशा के कुछ कहने के इंतेज़ार में चंद लम्हें खड़ा रहा मगर पल्वशा तो उस से कुछ कह ही नहीं पाई थी यहाँ तक उसने यामिर का शुक्रिया अदा भी नहीं किया था।

    यामिर उसे अजीब नजरों से उलझते हुए कुछ लम्हें और देखता रहा और फिर जाने के लिए मुड़ गया था। और पल्वशा बुत बनी वहीं पर बैठी की बैठी रह गई थी।


    ***

    "तुम्हें कितनी दफा समझाया है शहान गुस्सा से काम नहीं लेते। इस तरह घर छोड़कर चले जाने से क्या होगा बल्कि फायदा तो तेरे भाई और भाभी का ही है। देख लेना तुझे कुछ भी नहीं देंगे वह दोनों। उनके दिल में बेईमानी आ गई है। तू घर छोड़ कर चला जाएगा तो घर पर हिस्सा भी नहीं देंगे तुम्हें।" अम्मी हर बार की तरह फिर से उसे समझाने लगी थी।

    "ना दें मुझे कोई हिस्सा, बेहतर है दोनों अपनी कब्र में लेकर सब चले जाए।" शहान ने गुस्से में कहा था।

    "नौज़बिल्ला! ऐसे नहीं बोलते, भाई है तुम्हारा।" अम्मी तुरंत पलटी खाई थी। आखिर जैसा भी था, थातो बेटा ही और कोई भी मां अपने बेटे के मरने की बात नहीं सुन सकती।

    "मैं तो कहती हूं निम्रा की बात मान ले, क्या बुराई है उसकी बहन में? अच्छी भली तो है।" अम्मी ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा था। वह मां के गोद में सर रखकर लेटा हुआ था।

    "उनकी बहन से शादी कर लूँ, ताकि उनकी एक और कॉपी इस घर में आ जाए! अभी तो उसकी बड़ी बहन ने आपके कमरे को स्टोर रूम बना दिया है छोटी बहन आ गई तो कहीं आपको घर से ही ना निकाल दे।" शहान मिर्जा ने मां की अकल पर अफसोस करते हुए तंज कर रहा था।

    "तू कुछ ज्यादा ही सोचता है बेटा! ऐसा कुछ नहीं होगा। तू उसकी बहन से शादी कर लेगा तो उसकी भी अना खत्म हो जाएगी। देखना सब कुछ ठीक हो जाएगा। तूने उसकी बहन को ठुकराया है इसीलिए वह ऐसा करती है। और सबसे बड़ी बात तू सही रहेगा तो सब कुछ सही रहेगा। अपने बड़े भाई की तरह अपनी बीवी की हर बात में मत आना बल्कि ये एक अच्छा मौका है इस बिखरे हुए घर को संवारने का।" अम्मी अलग ही ख्याली पुलाओ पकाती थी और उसे खाने पर मजबूर भी करती थी।

    "अम्मी यह भी तो हो सकता है, मैं उसके हुस्न के जाल में फंस जाऊं। वह दिन को रात कहे तो मैं रात कहूं, वह रात को दिन कहे तो मैं दिन दोहराऊं, यह भी तो हो सकता है।" अब शहान मिर्जा मजाक के मूड में लौट आया था। अम्मी ने उसके कंधे पर एक चपत लगाई थी।

    "बहुत बोलता है तू, चल हाथ मूंह धो ले, मैं खाना निकलती हूं।" अम्मी कह कर पलंग से उठ गई थी।

    "खाने नहीं आया हूँ मैं, बस आपको देखने आया हूं।" शहान ने उन्हें रोका था।


    ****


    बैरम खान ने पंचायत में स्कूल का मुद्दा उठाया था और स्कूल का नाम सुनकर गांव वालों को खुशी होने के बजाए एतराज़ होने लगा था। एक ने उठकर बैरम खान से कहा था की स्कूल से ज्यादा जरूरत इस गांव को डिस्पेंसरी की है अगर कुछ खोलना ही है तो डिस्पेंसरी खोल दो।

    एक दूसरे ने कहा था हर घर में बिजली का इंतजाम कर दो। उस गांव में सिर्फ बड़े जमींदारों के घर ही बिजली के बल्ब जलते थे बाकियों के घर सिर्फ बल्ब लटकता था, बिजली नहीं आती थी। सबके अलग-अलग मशवरे थे। जिसे सुनकर बैरम खान का खून खौल उठा था।

    "मैं यहां कोई इलेक्शन नहीं लड़ने आया हूं कि आप लोगों की डिमांड पूरी करूँ, मैं बस बताने आया हूं कि मैं स्कूल खोल रहा हूं ताकि कल को आप यह सब ना कहें कि मैंने आप लोगों की इजाजत के बिना अपनी मर्जी से गांव में कुछ किया है। गांव में डिस्पेंसरी खुलवाना है या फिर बिजली लाना है तो आप उनसे कहे जो आपके गांव का मुखिया है। मैं इस गांव का मुखिया नहीं हूं।" बैरम ख़ान ने ऊँची आवाज़ में जैसे ऐलान किया था।


    "गांव के मुखिया नहीं हो तो मुखिया वाले काम भी मत करो।कोई जरूरत नहीं है यहां स्कूल खोलने की।" दिलावर खान ने तुर्श लहजे में कहा था।

    "ठीक है मैं नहीं खोलता कोई स्कूल, बेहतर है तुम ही खोल कर दिखा दो।" बैरम खान ने उल्टा दिलावर खान से कहा था। जो यहां का मुखिया था और दिलावर खान कोई और नहीं ज़ोरावर खान का मंझला भाई था।


    आगे जारी है:-