सुन ओ बेटी।
जन्म तो तूने ले लिया लेकिन जीने का अधिकार क्यों ना लायी,
बेटा-बेटी एक समान है कहकर भी समाज ने तुझको ठुकराई।
कभी नन्ही परी तो कभी प्यारी सी चिडिया सुनकर तू इठलाई,
फिर पंख फैलाकर मुक्त गगन में उड़ने की स्वीकृति क्यों ना लायी।
नन्ही सी प्यारी सी तूने भी तो दो-दो अंखियाँ पायी,
जब दायरा बढाया तूने देखने का तो भला धुँध ही धुँध क्यों छायी।
बचपन से ही हरदम तू रानी बेटी सुनकर बहुत इतरायी,
लेकिन फिर स्वयं की रक्षा के लिये झांसी की रानी क्यों ना बन पायी।
जो काम सिर्फ लड़के कर सकते थे वो हर काम तू करके दिखलाई,
तब फिर तू बेटी ही क्यों नहीं आखिर बेटा क्यों कहलाई।
इस जग में तेरी भूमिका की ना कर पाया कोई भरपाई,
फिर भी ना जाने क्यों तू कहलाई हर जगह ही पराई।
तेरे पिता ने जिस दिन के लिये जोड़ रखी थी पायी पायी,
फिर तू तो उस दिन भरपेट खाना तक भी ना खा पायी।
सुन ओ बेटी।
तुने जन्म तो ले लिया लेकिन कोख से बाहर क्यों ना आ पायी,
कोख से बाहर क्यों ना आ पायी।।
Comments