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ये मेरी स्वरचित कविता हैं जिसका पूर्णाधिकार मुझे हैं ,,,
हैं समस्त संसार मेरा घर , मैं धरा पे अनमोल रतन
जीवन कल्याण की भावना मेरी , हैं धरा मेरा वतन
मेरी पृथ्वी अनमोल अप्रीतम , आओ जरा अलख जगाए
भूमंडल पे शीतल निर्मल हवा को हम खूब बड़ाये
अपने भविष्य को रक्षित करने हरे भरे पेड़ लगाए
जो भी इसके संसाधन हैं आओ उन्हे सुरक्षित करे
कोमल दिव्य अद्भुत है जिसकी छटा निराली
समस्त मानव को देती हैं जो बसुधा पोषण
बंद करे हे मानव अब हम इसका शोषण ,
स्व का अंत न कहि हो जाए , आओ सरस गीत गाये
अमृत काल इस बेला मे हरित क्रांति फिर लाए