अंधविश्वास

    Bhoomi Bhardwaj
    @123GANESHA
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    2 Likes | 4 Views | Sep 12, 2024

    कविता- अंधविश्वास

    यू तो समस्याओं का भंडार है

    पर बात करेंगे आज उसकी जो समस्या होकर भी समस्याओं से फरार है 

    यह समस्या हैं विश्वास की 

    यह समस्या हैं अंधविश्वास की 

    अंधविश्वास धर्म का नही

    अंधविश्वास कर्म का है 

    सोच रहे होंगे आप। कर्म पर कैसा अंधविश्वास

    अंधविश्वास क्या है

    क्यों बुरा हैं ये समाज के लिए

     अंधविश्वास एक बीमारी है

    जो करवाते है काम

    बिना सोचे समझे खरे खरे

    मनुष्य के पास मस्तीश है

    सोच है बड़ी बड़ी 

    पर कहा चली जाती है ये सोच

    जब समस्या आकर हो जाती है खड़ी 

    ये लोकतंत्र है यह जनता का राज है

    पर ध्यान से देखो तो यह जनता ही गुलाम है 

    नेता साहब जो बोले वे पत्थर की लकीर है 

    बोलकर खीच देते है वो

    हिंदू मुसलमान में लकीर है 

    पर हम कैसे कर लेते है विश्वास

    क्या हमे अब नही है हमारे भारतवर्ष का ज्ञान 

    कहा है हमारी संस्कृति 

    जो सिखाए परोपकार की भाषा

    जो बताए अनेकता में एकता 

    हमारी संस्कृति को जैसे बनाना चाहे बनाते है ये नेता

    पर हमे पता है हमारी

    संस्कृति हमारे भारत की वेश भूषा

    हमारी संस्कृति मंदिर मस्जिद 

    से परे ये तो भगवान के स्थल है जो धर्म के धंधे है बने

    भिखारी हो या फकीर 

    राजा हो या नवाब

    मंदिर जाए कि मस्जिद 

    दिल होता है सबका साफ

    जब भगवान ने ना किया कोई फर्क 

    तो हम कौन होते हैं करने वाले तर्क 

    दो नेत्र दो कान है 

     सरहद पर लड़ने वाले 

    हिन्दू मुस्लिम दोनों महान है 

    फिर क्या बोध है मस्जिद बनाए या मंदिर 

    दोनों में ही ईश्वर का साथ है 

    तो फिर क्यों कर लेते हैं हम फर्क 

    क्यों भूल जाते हैं हम 

    रगो मे से खून हिन्दू मुसलमान दोनों का बहता है 

    क्यों भूल जाते हैं हम 

    कि झंडे पर केसर रंग के साथ हरा रंग भी आता है 

    केसर रंग और हरा रंग 

    किसी धर्म का नही है 

    ये तो प्रतिक है हमारे 

    भारत की शौर्य और विरता का

    ये तो सबुत है हिंदू और मुस्लिम की एकता का

    कैसे भूल जाते हैं हम

    अपने पुर्वजों को

    जिन्होंने इस देश के लिए खून बहाया 

    चाहते तो वो भी धर्म देखते पर 

    उस समय उन्हें अपनी भारत मां का चेहरा याद आया 

    अरे खाते एक मिट्टी का

    पानी पीते एक नदी का

    रहते हैं एक जगह पर 

    पर फिर भी यह क्यों वतन अकेला है 

    क्यों नहीं इसके सौ सौ हाथ इसके साथ 

    वह सौ हाथ नहीं वह हम हैं 

    जो छोड़ देते हैं अपनी भारत मां का साथ 

    अरे दिल पर हाथ रखकर पुछो अपने आप से कौन हो तुम 

    दावा करती हूं बात जुबां पर यही आएगी भारतवासी हो तुम 

    तो यह बात अपनी रूह में डाल लो

    और कहदो अपने आप से 

    मैं जय श्री राम बोलूं 

    या सलाम यह तो नहीं तय 

    पर एक बात तो है हम 

    आखिरी सांस तक कहेंगे 

    भारत मां की जय (२)

    उठाओ शस्त्र काट दो ये लकीर 

    समझादो नेता को 

    यह भारत की मिट्टी है जनाब 

    नहीं आपके खानदान की जमीन 

    अपने साथ होकर भी अपने साथ नहीं 

    यह बड़ी समस्या है और यह समस्या अन्धविश्वास है 

    क्योंकि यह नेताओं का बुना जाल है 

    जिस पर कर लेते हैं हम विश्वास है 

    तभी तो यह अंधविश्वास है 

    लेखिका -भूमि भारद्वाज