15 अगस्त, 1947 में सूरज की किरनें आज़ादी लाई,
सब लोग हसे और मुस्कुराएं चारों ओर थी खुशियाँ छाई ।
कितना सुंदर वो क्षण रहा होगा,
इस देश का हर व्यक्ति आज़ादी की साँस ले रहा होगा ।
सबकी होगी एक वाणी ,
हम हैं आज़ाद हिंदुस्तानी ।
लेकीन क्या आज सच में आज़ाद है भारत ?
पूछ रही है हर घर की औरत ।
जब वो सुबह घर से निकलती,
क्यों शाम कभी वापस नहीं लौटती ?
कहते हैं वो बंधे हैं कानून की बंदिशों में,
लेकिन खोट तो होती है उनकी तफ्तीशों में ।
वे दोष बतलाते हैं उसका देर रात तक बाहर रहना ,
क्या ठीक है इस तरह उन बेरहमों को बचाना ?
न जाने उसने कितने सपने बोए होंगे ,
वो आँखें ही बंद हो गईं जिसमें वो सुनहरे पल सजोए होंगे ।
इस तरह जुल्म कर तुम क्या पाओगे ?
उनके सपने छिनकर एक दिन तुम खुद बरबाद हो जाओगे ।
अब इस देश की हर एक लड़की यही है सोचती,
कितना अच्छा होता अगर वो भी एक लड़का होती ।
इस अंधेरगर्दी पिंजड़े में ना रहना पड़ता ,
आज भारत भी हमारा अपना होता ।
चारों ओर अमावस्या की काली घंघोर अंधेरी रात छाई,
हाय ! पढ़े-लिखे को फिर से पढ़ाने की कैसी ये नौबत आई ।
इस घंघोर कलयुग में अपना पुरुषार्थ दिखाते हैं,
ये लोभ के पुजारी नाबालिग को भी अपना आखेट बनाते हैं ।
अब बस बहुत हुआ,
हमने अब तक बहुत सहा ।
अब लक्ष्मी नहीं, काली और दुर्गा बनना होगा
कोमलता छोड़, अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होगा ।
सब लोग कपेंगे थर-थर ऐसी दहशत फैलाएंगे,
इस बार हम एक पूर्ण स्वतंत्र भारत बनाएँगे ।
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