एक उलझन सी है जिंदगी, पल मे खुसी पल मे गम
एक पल मे डोली उठती, दूजे पल ही अर्थी
एक तरफ है खुशियां छाई, दूजे पल ही विपदा आई
बड़ी उलझन सी है जिंदगी, पल मे खुशी पल मे गम
काही कुबेर का धन पड़ा, कही कोई भूखे पेट पड़ा
ना खाने को भोजन होता, ना पीने को पानी
फिर, क्यू देती है कुदरत ऐसी जिंदगानी
इस धरती पर खुशियों से ज्यादा, क्यू होते है गम के दिन
फिर भी खुशियां आते ही भूल जाते है गम के दिन
अमीर क्या गरीब क्या, सबकी है ये उलझन
कोई नहीं है इस धरती पर, सच्चा सुखी संमपन परिवार
हर किसी को इस धरती पर, जिंदगी जिनी है एक समान
अमीर क्या गरीब क्या, पल मे खुशी पल मे गम ।।
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