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मजा नहीं आया …

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स्वयं लिखा हुआ

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मजा नहीं आया

मजा नहीं आया भाई … घर में घुसते ही बाबा को किसी को फ़ोन पे कहते सुना – 

मैं

नहीं अभी नहीं आया, अब तक तो आ जाना चहिये था, अभी दूर होगा,  सामाजिक चौराहे वाली सड़क पर भीड़ भी ज्यादा रहती है इस समय, तो समय लग रहा होगा,

बाबा कुछ समझ नहीं पाए “क्या कहा” बोल के अपने आप में ही कुछ करने लग गए थे, मैं अपने ही धुन में बोले जा रहा था, 

अच्छा कौन से धर्म या जाति वाला बुलाया है आपने, कुछ भी पता नहीं किये होंगें बाबा आप, इतना तो पता है हमें, की आने वाला मजा तो हिन्दू ही होगा, लेकिन मुझे ये बात भी अच्छे से पता है की आपने उसकी जाति पर ध्यान नहीं दिया होगा, अब देख लेना अम्मा उसको घर में घुसने ना देंगी राम राम कह के दरवाजे पे ही बैठा देंगीं बाहर, जब तक सब कुछ पता नहीं कर लेंगीं, अभी भी कह रहे हैं आप को फ़ोन कर के एक बार पता कर लो आप, अम्मा को तो छोडो चौराहे पे ताऊ जी ही पकड़ लेंगें, लगेंगें धरम जात गोत्र कुनबा पूछने,

बाबा मेरी बात कानों से कम आँखों से ज्यादा समझने के लिए ध्यान लगा के टकटकी लगाये लगातार घूरे जा रहे थे   

मैं

बाबा आप तब तक नहा धो लो, जब तक वो आये, दिल्ली से पायल दीदी का फोन आया था बता रही थी की दो चार दिन पहले उनके यहाँ आया था जब नवरात के बाद जीजा अपने हाथ से 6 घंटा में मटन बनाये थे, सब जैसे ही खाना निपटाए वैसे ही पहुचा था  उनके यहाँ, पर जीजा जी को भी क्या पड़ी थी काहे सिंटूआ से पूछे खाना पीना होने के बाद की कहाँ से खरीदे थे, बढ़िया बना था… सिंटू जैसे ही बोला आसिफ की दुकान से बस फिर क्या था कल तक उलटी कर रहे थे, आज सुबह जब बात हुई तो पायल बता रही थी मजा चला गया था सब उस दिन सारे खाने का,

बाबा नहाने चले गए मेरी बात को समझे ना समझे, सुना-अनसुना कर के, मैं भी अम्मा का इन्तजार कर रहा था, उनके कहने पे ही केले लेने गया था पीछे से, अम्मा चली गयी थी मेरे वापस आने से पहले दो कदम दूर नुक्कड़ वाले मंदिर पे, फल फूल चढ़ाती थी रोज, आज फल ख़तम हो गए थे, बोलीं केले लेते आ, लेके पहुंचा तो खुद गायब और तो और बाबा भी केले देखते ही एक पूरा गटक गए,

बाबा

कच्चे हैं थोड़े पके हुए देख के लाता,  मजा नहीं आया, पाण्डे के ठेले से ही लाया है ना ?

मैं जब तक जवाब देता बाबा नज़रों के समाने से गायब हो चुके थे, मैं वहीँ जडवत खड़ा मन ही मन पता नहीं क्या सोच रहा था की … 

अम्मा सिर्फ दरवाजे तक राम राम बुदबुदाती घर में घुंसी थीं,

अम्मा

अरे पता नहीं मंगलवार वाले दिन मरे इतने सारे लोग कहाँ से आ जाते हैं मंदिर में पैर रखने की जगह नहीं थी लल्ला आज तो … पानी तक ना चढ़ा पाए ठीक से अपने राम जी को, और तुम भी लल्ला कहाँ चले गए थे केले लेने आज राम जी बिचारे भूखे प्यासे ही रह गए पूजा तो क्या ख़ाक हो पायी बिलकुल मजा नहीं आया पूजा करने में, निक्कू नहीं आया क्या अभी तक, देखना आते ही चिल्लाएगा जल्दी कर दो कॉलेज भागना है, 

अरे बबली दाल उतार दी थी की नहीं ?

बबली

अन्दर रसोई से ही                                          हाँ अम्मा

अम्मा

बस जल्दी से दाल घोंट के तडका मार दे बबली, और आटा लगा दे आते ही रोटी उतार देना उसके लिए, चाय मिलेगी क्या एक आधा कप बबली, दर्द से सर फटा जा रहा है, अपने बाबा से भी पूछ ले एक बार पियें तो,

तभी बाबा आँगन की ही तरफ आते दिखे, गीला तौलिया हाथ में लिए, आते आते बोलते भी जा रहे थे,

बाबा

हमने कभी चाय के लिए मना किया है क्या, लल्ला तुमसे कब से कह रहे हैं टोंटी या पाइप में कुछ गड़बड़ है ठीक करा दे, पानी एक दम कम आने लग गया है, आज कल बिलकुल भी नहाने में मजा नहीं आ रहा है पर मेरी सुने कौन सारा दिन खटिया तोड़ने में जो लोगों को मजा आता है वो घर का काम करने में कैसे आएगा     

मैं लल्ला सबके मजे का चश्मदीद गवाह, अम्मा के पास खड़ा खड़ा थोड़ी दूर लगे वाशबेसिन के ऊपर लगे छोटे से शीशे में अपना मुंह देख रहा था, वाह रे मजा …

सबसे बड़ी दिल्ली वाली बहन पायल उसके बाद मैं लल्ला फिर बबली और उससे छोटा निक्कू जो बारहवीं में था – और बाबा अम्मा, बाबा का असली नाम सिर्फ राशन कार्ड और वोटिंग आई डी में ही दर्ज था जो बाबा के अलावा कुछ लोग ही जानते थे, पूरे मोहल्ले में सब बाबा को बाबा ही बुलाते थे,  हमारा 6 लोगों का छोटा सा परिवार लड़का लड़की और लड़का के चक्कर में बाबा अम्मा ने भी मजे मजे में परिवार को छोटा ही रखा था, बाबा की एक छोटी सी रजाई गद्दे की दुकान थी, बस बचपन में वहीँ से देखा सुना था मजे के बारे में जो बाबा की दुकान पे बहुत बार आता था और बहुत बार वापस बिना कुछ बात या चाय पानी के चला जाता था

मारकीन और चेक वाले मोटे कपडे की हमारे घर में कमी नहीं हुआ करती थी, कभी कभी तो शायद  बाबा रंग में भेद करना भी भूल जाते थे तभी सबके कपडे जब किसी त्यौहार पे सिलाए जाते तो अम्मा के संग संग मोहल्ले वाले भी मिल के बोलते थे मजा नहीं आया सब एक थान से ही सिला लाये क्या ?

अब कुछ दिन पहले ही तो दो घर दूर वाले मिश्रा जी गरमा गरम समोसे की तरह दुकान पे पहुँच गए थे, प्लेट की तरह दुकान की फर्श पे पसर जाने के लिए,

मिश्रा जी

जय श्री राम बाबा…

बाबा

राम राम

मिश्रा जी

आपने पैसे तो पुरे लिए, आपने गद्दा बनाया भी अच्छा, पर लगता है वो बात नहीं रह गयी आपके हाथों में जो पहले हुआ करती थी थोड़े ज्यादा ही नरम बन गए गद्दे शायद, सोने में मजा ही नहीं आ रहा …

बाबा

मिशर्वा तुम भी ना, हाथ से रुई धुनवाते और सिंथेटिक रुई के लिए तो हम मना भी किये थे ना तुमको, देशी रुई डलवाते तो अलग ही पुरानी वाली बात होती अब तुम भी तो समय के हिसाब से मशीन से धुन दो और भरवाए भी थोडा कम ही तो थे, पैसे बचाने के चक्कर में, और तुम अब कह रहे हो मेरे हाथों में अब वो बात नहीं, मजा नहीं आया, ले आना वापस अपने हिसाब से बना के देता हूँ अबकी बार तब ले लेना मजे,

मिश्रा जी तब से पता नहीं क्यूँ पलट के ही नहीं आये, उसी गद्दे पे शायद मजा आने का इन्तेजार कर रहे होंगें, या वापस थोड़े ज्यादा पैसे और लग जायेंगें तो मजा चला जाएगा,  सोच के चुपाई मार लिए होंगें, हा हा हा …

पर बाबा की दुकान पर अलग अलग बहुतेरे लोग आते थे, कुछ तो दुकान की तरफ से गुजरते हुए ही हाथों की उँगलियों से 6 बना के मजे के आने की बात बिना बोले गुजर जाते थे और कुछ अपने मजे के लिए बाबा के मजे में दखलंदाजी कर देते थे, पर कोई नहीं बाबा अपना काम मजे ही ले के कर रहे हैं सालों से … वहीँ दुकान पे ही उठते बैठते ही सीखा पढ़ा मैंने मजे के बारे में –

अब क्या बोलूं मैं हर एक इंसान की सारी इन्द्रियाँ जो की कुल मिला कर 6 होती हैं, जो शायद इस ब्रह्माण्ड में बिना मजे के आराम से हर एक जीवन में विधमान हो भ्रमण कर रही हैं

1 आँख – प्रकाश और रंग – द्रष्टि, 

2 कान – ध्वनि – स्वर

3 आतंरिक कान – गुरुत्वाकर्षण, त्वरण – संतुलन

4 नाक – रासायनिक पदार्थ – गंध 

5 मुंह – रासायनिक पदार्थ – स्वाद

6 त्वचा – स्थिति गति तापमान – स्पर्श 

मजे की बात तो ये है की मजा हमारा आपका बनाया अपने आप को क्षणिक और झूठे एहसास से ओत प्रोत भ्रम मात्र आनंद है, इन इन्द्रियों को अपने कार्य करने के अलावा समय कहाँ मिलता है की जो मजा इनपे हावी हो पाए पर हम सब सारा समाज आज कल सिर्फ मजा ही ढूंढते रहते हैं अब वो भी कहाँ कहाँ पहुचे एक साथ दिवाली की लक्ष्मी जी वाली हालत हो गयी है सब दरवाजा रात भर खोले रहते हैं भले चोर के कंधे पे बैठ के पहले से ही घर में विद्दमान लक्ष्मी जी वापस क्यूँ ना चली जाए,…

और मजे के चक्कर में जो हमारे आपके सभी के पास है उस को भूल जीना छोड़ मजे को कस्तूरी मृग की तरह हर एक चीज में ढूंढने के कारण बाहर ही झांकते हुए पूरा जीवन बिता देते हैं मजे की बात तो ये है कि मजे से जीवन व्यतीत हो रहा है सिर्फ एक संतुस्ट इंसान ही कह सकता है अन्यथा हर एक दूसरा इंसान बेवजह कुंठित और परेशान है उसको जिंदगी जीने में मजा ही नहीं आ रहा है

निक्कू के पीछे पीछे मजा भी घर पहुँच ही गया, अभी तक किसी को भी मजे की जात-पांत पूछने की सुध नहीं थी, निक्कू खाने के साथ मजे ले रहा था, और चाय की चुस्की के मजे बाबा अम्मा ले रहे थे, और मैं वहीँ दालान के एक खंबे से कंधा टिकाये तीनों लोगों को तल्लीनता से निहार रहा था

आप सभी के पास भी आने वाला है दरवाजा खिड़की भले ही बंद रखिये पर अपना दिल और दिमाग खोल के रखियेगा …

पर मजे के लिए नहीं, अपनी इन्द्रियों के आनंदित होने के एहसास को अनुभव करने के लिए …       

bhupen thakurOffline

bhupen thakur

@bhupen-thakur





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