तल्ख़ सच से वाबस्ता कर जाएँ हम
ग़मो से दोस्ती कर जाएँ हम
तुझसे मिली चीज़ को कुछ ऐसे रखे
ज़ख्म को मोहब्बत कह जाएँ हम
एक दूसरे में ये चीखना कैसा
क्यों ना अब चुप कर जाएँ हम
महज़ बात सिर्फ इतनी है
एक बात भी ना कह जाएँ हम
इमरोज़ एक ख्याल है मेरा
खामोश ही रह जाएँ हम
~दिग्विजय
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