वीर रस-VEER RAS6th December 2022by RITESH GOELDisclaimer/Notice as Provided by the Content Creator this poem belongs to poet ritesh goel besudh & thas me, enjoyवीर रस में लिखना देखो मैं भी दिल से चाहता हूँ, कलम से निकले शब्दों को शोलों सा दहकाता हूँ, मंच पर चढ़ कर जोर-जोर से देखो मैं चिल्लाता हूँ, वीर रस के कवियों की भाँति मुद्राएँ बनाता हूँ, पर तभी मुझे याद आ जाती हैं मेरी शादी की वो रात, जल्द ही पता लग गई मुझे सब पतियों की औकात, किस तरह मेरे अंदर का शेर चूहा बनकर भागा था, हमने पत्नी के सामने अपना वर्चसव त्यागा था, चाहे आप हो कोई नेता या ग्राम विकास अधिकारी, घरवाली की नज़रों में रहोंगे एक मामूली कर्मचारी, आप का रोब सिर्फ आप के दफ़्तर में चल पाएगा, घर पर तो वो तानाशाह ही आप की बैंड बजाएगा, खैर यह तो होना ही था, शादी के बाद तो रोना ही था, इस तरह से वीर रस मेरी रचनाओं से धूमिल हो जाता हैं, फ़िर हास्य का काला बादल उन पर जोरों से कड़कड़ाता हैं, दर्शकों से ठहाकों की बारिश करवाता हैं, हास्य का कवि वीर रस में भी हँसाता हैं। लेखक- रितेश गोयल ‘बेसुध’ Last Seen: Dec 6, 2022 @ 6:20am 6DecUTC RITESH GOEL RGBESUDH followers0 following0 Follow Report Content Published: 6th December 2022 Last Updated: 6th December 2022 Views: 7previousYou are far from menextTHE DEATH TRAP CALLED PROCRASTINATION! Leave a Reply Cancel replyYou must Register or Login to comment on this Creation.