एक शाम अकेले बैठे उस किनारे पर, पहाड़ों की ऊंचाई और नदी की गहराई के संग,
मेरा रिश्ता कुछ अटूट सा लगता है।
उस में ही खो जाऊं मन करता है।
खूबसूरत,अद्वित्य, मनमाना सा लगता है
ऊंची ऊंची लहरों में सिमट जाना अच्छा लगता है
कितनी सुहावनी हवाएं चलती है
ये तो उसके पास जाकर पता लगता है।
इतना विशाल, जैसे उसके जल रूपी ह्रदय में डूबने का मन करता है
काश मैं भी वो पंछी होता, जो आकाश में अपनी मर्जी से उड़ता है
इतनी मासूमियत के साथ बहता है वो
की घंटो निहारने का मन करता है
हां, उस नदी में एक डुबकी लगाने का हक तो मेरा भी बनता है।
कितनी यादें, कितनी बाते याद आती है
जब खुद के साथ उन लहरों का साथ होता है।
लहरों का उठना फिर गिरना, किसी रिदम से कम थोड़ी लगता है।
साथ में हवाओ का चलना , किसी गीत से तो बेहतर लगता है।
उसके समीप बैठ कर कौन ही भला अकेला लगता है
उसके छीटों का चेहरों पर पड़ना कूलर से तो बेहतर लगता है।
महसूस करने की बात है, अगर सोचें तो
अपने जीवन की गहराई, उसकी गहराई से कम थोड़ी लगता है।
हां, मैं बात करती हूं उस नदी के घाट की
जिसके समीप बैठना स्वर्ग सा सुंदर लगता है।
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