हिमाचल के नगरकोट ज्वाला जी मंदिर के पास। एक छोटा सा गांव था। उस गांव में पार्वती नाम की महिला अपनी 9 बरस कीबेटी शीतल के साथ रहती थी। शीतल का पिता जुआरी शराब अय्याश किस्म का व्यक्ति था। वह गांव का मकान बेचकर कहीं भाग गया था। पर गांव के दूध बेचने वाले धनीराम नाम के व्यक्ति ने शीतल की मां को गाय भैंसों की देखभाल का काम दिया। और शीतल और उसकी मां को गाय भैंसों के तबेले में रहने की जगह दी। धनीराम एक सज्जन और इमानदार व्यक्ति था।पर उसकी पत्नी स्वभाव से चिड़चिडी और लालची थी। शीतल की 9 बरस की आयु थी। पर वह बहुत बुद्धिमान और समझदार थी। शीतल की मां और शीतल हर मंगलवार को माता के मंदिर में जाते थे। मंदिर का पुजारी शीतल के चंचल और समझदार स्वभाव के कारण उसे पसंद करता था। वह हर मंगलवार को शीतल को खाने के लिए बहुत सा प्रसाद दिया करता था। एक मंगलवार को मंदिर में भंडारा हो रहा था।
शीतल पुजारी से पूछती है “कि आज आप मंदिर में भंडारा क्यों कर रहे हो” पुजारी शीतल कोबताता है कि, “किसी माता के भक्तों की माता नेमनोकामना पूर्ण की है। इस वजह से वह भंडारा कर रहा है।”शीतल फिर पूछती है। “क्या माता सारे दुख संकट खत्म कर सकती है।”मंदिर का पुजारी कहता है”मातासब की मां है। और मां अपने बच्चों को हमेशा सुखी देखना चाहती है। कुछ दिनों के बाद माता के नवरात्रि आने वाले हैं। जो माता की सच्चे मन से नवरात्रि में पूजा करता है। और माता के व्रत रखता है। माता उसके सारे दुख संकट खत्म कर देती है। और उसे जीवन की सारी खुशियां देती है। शीतल उस दिन मंदिर के पुजारी की बात को अपने मन में रख लेती है। और माता के नवरात्रि आने का इंतजार करने लगती है। और नवरात्रि से एक दिन पहले सुबह सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले गांव के कुम्हार के पास जाती है।
माता की छोटी सी मिट्टी की मूर्ति बनवाने के लिए और पूजा के लिए दीपक लेने छोटी सी शीतल के पास पैसे नहीं थे।इसलिए कुम्हार उससे कहता है, पहले मेरे गधे के खाने के लिए जंगल से हरी हरी घास और पत्ते लेकर आओ छोटी सी शीतल जंगल से हरी घास और हरे पत्ते गधे के खाने के लिए लाकर कुम्हार को दे देती है। फिर कुमार एक छोटी सी मिट्टी की सुंदर सी मूर्ति माता की बनाकर शीतल को देता है। और बहुत से दीपक भी साथ में देता है। उसके बाद छोटी सी शीतल कोदीपक के लिए रूई चाहिए थी। वह जंगल में जाती है। कपास का पेड़ ढूंढने। उसे कपास का पेड़ मिलता है। उसकापास के पेड़ पर एक लंगूर बैठा हुआ था। लंगूर शीतल के कुछ कहे बिना या कुछ करें बिना ही, कपास के फूल को तोड़ कर नीचे फेंक देता है। और छोटी सी शीतल उसमें रूई निकाल लेती है। फिर शीतल किसान के पास जाती है। किसान से रई के बीज और सरसों मांगती है।
दीपक में सरसों का तेल डालकर जलाने के लिए। किसान कहता है “पहले 10 गड्डी सरसों मेरे खेत से काटो उसके बाद मैं तुम्हें राई के बीज और सरसों दूंगा।’छोटी सी शीतल खेत में से 10 गड्डी सरसों काटकर किसान को दे देती है। उस 10 गड्डी में से किसान दो गड्डी शीतल को देता है, और बहुत से रई के बीज भी शीतल को साथ में देता है। उसके बाद छोटी शीतल गांव के बढ़ाई के पास पहुंचती है। माता की लकड़ी की चौकी बनवाने के लिए।
बढ़ई कहता है “मेरी दुकान के आगे जो लकड़ियों का बरूदा फैला हुआ है। उसे झाड़ू मार कर इकट्ठा करके कूड़ेदान में डाल कर आओ। छोटी सी शीतल झाड़ू से लकड़ियों का सारा बरूदा इकट्ठा करके कूड़ेदान में फेंक कर आ जाती है। बढाई उसे माता की छोटी सी लकड़ी की खूबसूरत चौकी बना कर देता है।अब इस सब के बाद शीतल को जरूरत थी माता की चुन्नी माता का शृंगार और नारियल की इसके लिए शीतल गांव के दुकानदार के पास जाती है। गांव का दुकानदार कहता है
“पहले मेरे घर के सारे कपड़े और बर्तन धो कर मेरे पास आ।उसके बाद मैं तुझे यह समान दूंगा। छोटी सी शीतल फटाफट उसके घर के सारे बर्तन और कपड़े धो देती है। फिर गांव का दुकानदार छोटी सी शीतल को माता की चुनरी नारियल पूजा का सामान सिंगार का सामान दे देता है। छोटी सी शीतल अपने दोनों हाथों से अपनी फ्रॉक की झोली बनाकर सारा सामान उसमें इकट्ठा कर लेती है। नवरात्रों का सामान इकट्ठा करते करते शीतल को घर पहुंचने में बहुत रात हो जाती है। रात होने की वजह से शीतल की मां पार्वती उसे पूरे गांव में ढूंढ ढूंढ कर परेशान हो रही थी। शीतल को देखते ही उसकी मां पार्वती बहुत नाराज होती है। पर शीतल की फ्रॉक की झोली में माता के नवरात्रों की पूजा का सामान देख कर चुप हो जाती है। उस रात शीतल इतना थक जाती है, कि मां के बार बार कहने के बावजूद भूखे पेट सो जाती है।
और सुबह छोटी सी शीतल जल्दी उठकर माता की चौकी लगाकर नवरात्रि के व्रत रखकर चौकी के सामने बैठ जाती है। धनीराम की पत्नी भी माता के नौ नवरात्रों का व्रत रखती है। पर वह सुबह से ही दूध देसी घी फल मेवाखाना शुरू हो जाती थी। और रात तक खाती रहती थी। घर के छोटे-मोटे कामों के लिए भी शीतल की मां को बार-बार आवाज देती रहती थी। सातवें नवरात्रि तक शीतल की हालत को देखकर उसकी मां पार्वती को चिंता होने लगती है। वह धनीराम की पत्नी से कुछ फल दूध मेवा शीतल के खाने के लिए मांगती है, पर धनीराम की पत्नी साफ मना कर देती है। नौवें और आखरी नवरात्रि पर शीतल भूख प्यास से बेहोश हो जाती है।
शीतल की मां पार्वती गांव के कुछ लोगों के साथ मिलकर शीतल को अस्पताल लेकर भागती है। पर अस्पताल के गेट पर शीतल का पिता मिल जाता है। वह पहले पार्वती से माफी मांगता है। और शीतल की इस हालत का कारण पूछता है। उसके बाद भागकर शीतल के लिए दूध घी मेवा फल खाने के लिए लेकर आता है। शीतल का पिता फिर बताता है कि “पहले नवरात्रे को मैंने किसी व्यापारी के पुत्र को बदमाशों से बचाया था। इस वजह से उस व्यापारी और पुलिस ने मेरा बहुत मान सम्मान किया। पहले नवरात्रि में ही मुझे समझ आ गया था, कि अच्छे कर्म और इमानदारी जिम्मेदारी से जीवन जीने से समाज में सम्मान मिलता है। और बुरे काम से तो एक ना एक दिन बदनामी अपमान औरमौत मौत भी मिल सकती है। उसके बाद फिर कहता है कि “उस व्यापारी ने मुझे इनाम में बहुत सा धन दिया और अपने व्यापार में एक बहुत अच्छी नौकरी दी है। धीरे-धीरे शीतल भी होश में आ रही थी। पिता की सारी बातें सुन रही थी, पूरी तरह होश में आकर शीतल तेज आवाज में जयकारा लगाती है, ‘जय माता दी” उसके साथ उसके माता-पिता और गांव के लोग भी जयकारा लगाते हैं, “जय माता दी” शीतल उसकी मां उसके पिता गांव आ कर माता की पूजा करते हैं। और नौ कन्याओं और बहुत से बच्चों का भंडारा करते हैं।
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