
समय है जो रेत सा, मुठ्ठी से फिसलता जा रहा,
तू कौन है ?क्या वजूद है ? यह भी न समझ पा रहा,
तू कौन है, यह जान ले समय अभी बाकी है,
स्वयं की स्वयं से पहचान अभी बाकी है ।
तू सूर्य है ,तू चंद्र है तेरा भी एक प्रकाश है,
उस प्रकाश के वजूद की ही सबको प्यास है,
प्यास को बुझाने का संघर्ष अभी बाकी है,
अंधकार मिटाकर सूर्य सा चमकना अभी बाकी है,
जीवन तेरा अमूल्य है, ये व्यर्थ है यह भूल है,
थककर मत बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर,
तू हार मत, संघर्ष कर
तेरा लक्ष्य अभी बाकी है,
धरती से आसमान की उड़ान अभी बाकी है
जब इतना सब कुछ बाकी है
तो समय व्यर्थ क्यों गंवाना है,
अपने जीवन का सदुपयोग करना अभी बाकी है,
लोगों के दिलों पर राज करना अभी बाकी है ।।
:- भूमिका पाण्डेय
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