पग बेड़ियाँ हों ऐसी, जो न तोड़ी जा सके
तो छोड़ ख्वाब, पंख फैला आसमाँ में उड़ने का
शांत मन कर और फिर तू समर्थता पर जोर दे
उड़ सकेगा, जब चाहेगा, अरमां जगे, जब उड़ने का
कौन किसको बांध सका है ‘गर कोई ठान ले
हल हजारों मिल जायेंगे, हो उन्मुक्त विचरने का
संशय में जो खुद को स्वामी, औरों को लाचार समझ बैठा
प्रकृति की नियति को भूल गया, खेल सँवरने और बिगड़ने का
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Very Inspiring poetry Sir Thank you Sir 🙏🙏👍👍
Nice 👍Sir