खेलो न तुम प्रकृति से यारों
न जाने कब ये खेल कर दे
सुख सुविधा की आस में हो
जिंदगी कहीं, गमों से न भर दे
आकाश, पाताल, जल, जमीं से
पहाड़, जंगल ये कहीं से
समय, बेसमय कहीं पर भी
आफ़तों की बारिश कर दे
खेलो न तुम प्रकृति से यारों
न जाने कब ये खेल कर दे
ताकत प्रकृति की न आजमाओ
संसाधनों को यूँ न मिटाओ
न जाने किस घमंड में हो
पल में, वो चाहे, चकनाचूर कर दे
खेलो न तुम प्रकृति से यारों
न जाने कब ये खेल कर दे
मौज का आलम, जब तलक शांत वो
दूर न पहुँच से, कोई देश प्रांत हो
गुमान किसी बात का करना फिजूल है
एक करवट धरा की, दहशत से भर दे
खेलो न तुम प्रकृति से यारों
न जाने कब ये खेल कर दे
कद्र कर लो, प्रकृति से प्रेम जगाओ
जल, जंगल और ये पहाड़ बचाओ
मानो न मानो प्रकृति का नियंत्रक
कोई तो है जो जिंदगी सरल कर दे
खेलो न तुम प्रकृति से यारों
न जाने कब ये खेल कर दे
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🙂🙂🙂