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खेलो न तुम प्रकृति से यारों

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खेलो तुम प्रकृति से यारों

जाने कब ये खेल कर दे

सुख सुविधा की आस में हो

जिंदगी कहीं, गमों से भर दे

आकाश, पाताल, जल, जमीं से

पहाड़, जंगल ये कहीं से

समय, बेसमय कहीं पर भी

आफ़तों की बारिश कर दे

खेलो तुम प्रकृति से यारों

जाने कब ये खेल कर दे

ताकत प्रकृति की आजमाओ

संसाधनों को यूँ मिटाओ

जाने किस घमंड में हो

पल में, वो चाहे, चकनाचूर कर दे

खेलो तुम प्रकृति से यारों

जाने कब ये खेल कर दे

मौज का आलम, जब तलक शांत वो

दूर पहुँच से, कोई देश प्रांत हो

गुमान किसी बात का करना फिजूल है

एक करवट धरा की, दहशत से भर दे

खेलो तुम प्रकृति से यारों

जाने कब ये खेल कर दे

कद्र कर लो, प्रकृति से प्रेम जगाओ

जल, जंगल और ये पहाड़ बचाओ

मानो मानो प्रकृति का नियंत्रक

कोई तो है जो जिंदगी सरल कर दे

खेलो तुम प्रकृति से यारों

जाने कब ये खेल कर दे

Prem SinghLast Seen: Sep 28, 2023 @ 11:51am 11SepUTC

Prem Singh

@Prem-Singh





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