चाहे,बादल बहुतेरे आयें, या घनघोर घटाएँ छायें
कम तो कर सकते हैं प्रकाश, सूरज को रोक न पायें
ये काली काली घटाएँ, छाती हैं छाती रहेंगी
रवि तपन देख ये सारी, पल पल छितराती रहेंगी
सूरज अपनी ऊष्मा की मौलिकता धारे हुए है
किरणों के ज़रिये धरा पर, वो पाँव पसारे हुए है
किरणें सूरज की धरा पर, बिलकुल भी पहुँच न पाये
गहरे काले मेघों ने, यूँ अड़ंगे बहुत लगाये
किंतु रवि प्रतिभा के वे, आगे टिक न पाये
आगे बढ़ते कदमों से, वे इधर उधर छितराए
हम छद्म, दंभ, खोखलेपन के, आडंबर को हटायें
संकल्प साध, मौलिकता की, अपनी ऊष्मा को बढ़ाएँ
यदि यक़ीं स्वयं की क्षमता पर, जो चाहोगे पा लोगे
मेहनत का मीठा फल प्यारे, फिर निश्चय ही पा लोगे
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Nice Sir 👌👌👌
Nice poem Sir